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National Press day This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

National Press day

सुबह की चाय और अखबार या फिर खबरों की सुर्खियों का नाता इतना गहरा है, मानों आसपास के अंधेरे को मिटा कर, यही वो है, जो सूरज की रोशनी की तरह हमारे दिलोदिमाग को तरोताजा़ कर देती है। अकसर सच और झूठ की पैमाइश में, अखबारों के पन्ने पलटते हाथ, जब थम जाते हैं, तो ठंडी बेंच पर पड़ी चाय, खुद पानी हो जाती है। इस बारे में बात करना लाजिमी है, क्योंकि आज प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की 56वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में देशभर में नेशनल प्रेस डे मनाया जा रहा है, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंटरनेशनल डे ऑफ टॉलरेंस हमें थोड़ा टॉलरेबल होने की प्रेरणा दे रहा है। राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस की इतिहास की बात की जाए, तो साल 1956 में, प्रेस आयोग ने एक अलग निकाय बनाने का निर्णय लिया, जिसके पास वैधानिक अधिकार हों और जो पत्रकारिता की नैतिकता को बनाए रखने का काम करे। इसके 10 साल बाद, आज के दिन यानी 16 नवंबर 1966 को प्रेस आयोग द्वारा प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का गठन किया गया था। आज, दुनिया के लगभग 50 देशों में प्रेस परिषद या मीडिया परिषद है, और भारत उसमें से एक है, जिसका उद्देश्य स्वतंत्र पत्रकारिता को जीवित रखना है। पीसीआई न केवल स्वतंत्र प्रेस की रक्षा करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि पत्रकारिता की विश्वसनीयता से समझौता न हो और भारत में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे।

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समय के साथ पत्रकारिता के तौर तरीके बदले हैं। जब विकास हर क्षेत्र में हुआ, तो परिवर्तन की इसी क्रियोसिटी में पत्रकारिता भी अखबार की पगडंडियों पर चलते-चलते डिजिटल प्लैटफॉर्म्स तक पहुंच गई। आज मीडिया इंडस्ट्री प्राइवेट सेक्टर का एक ऐसा बिजनेस बन चुका है, जिसने एक ओर जहां रोजगार के ढेरों अवसर पैदा करके देश की इकोनॉमी को बढ़ाया है, वहीं अनुशासनहीनता के चलते खुद भी सवालों के कटघरे में खड़ा हो चुका है। एक्चुअल में आखिर, मीडिया का काम क्या है, सच को हमारे सामने रखना यानी आम जनता की आंखें और कान बनना। साफ शब्दों में कहें, तो पत्रकारिता लोकतंत्र के अन्य स्तंभों की एक्टिविटीज को नियंत्रित करने और जनता को उनके बारे में सूचित रखने के लिए जिम्मेदार है। आजकल एक ओर जहां, पेड न्यूज अपने आवरण से बाहर निकल, पैर पसारने लगी हैं, वहीं पारदर्शिता में कमी और कुछ चैनलों का पॉलिटीशियन और बिजनेस ग्रुप्स के साथ डायरेक्ट कॉनटेक्शन, पत्रकारिता को सवालिया बना रहा है। दुर्भाग्य से मीडिया इंडस्ट्री की ज्यादातर ऑडियंस खबरों को सीरियसली नहीं लेती। मतलब दूर-दराज हुई घटनाओं से हमें फर्क ही नहीं पड़ता, चाहे उनके बारे में मीडिया सच परोसे या फिर झूठ। जाहिर सी बात है, सभी मीडिया चैनल्स की अपनी-अपनी ऑडियंस है। अगर आपके नजरिए से किसी मीडिया चैनल का कंटेंट सही नहीं है और आपको पसंद नहीं आ रहा है, तो क्यों नहीं उसे देखना ही बंद कर देते। जब आप ऐसा करेंगे, तो मीडिया चैनल्स खुद ब खुद अपने न्यूज पैटर्न को बदल लेंगे। फॉर एग्जांपल- मार्केट में कोई प्रोडक्ट जनता को सही नहीं लग रहा, तो उसकी डिमांड कम होने की वजह से कंपनी के पास उस प्रोडक्ट की स्पलाई बंद करने के अलावा और कोई आप्शन नहीं बचेगा। इसलिए मीडिया हाउस का यह बिजनेस भी पूरे तरीके से टीआरपी पर बेस्ड है और आप, उनकी टारगेट ऑडियंस हैं। आप जैसा चाहेंगे, वो वही दिखाएंगे। जरा सोचिए कि इसमें किसकी गलती है- मीडिया की या फिर ऑडियंस की। कोई हिस्टॉरिकल कनेक्शन नहीं है, लेकिन संयोग की बात है कि आज इंटरनेशनल टोलरेंस डे भी है। संयोग इसलिए, क्योंकि कई बार मीडिया द्वारा दिखाई जा रही खबरों को भी, तो हम सिर्फ टोलरेट करते हैं। खैर। इंटरनेशनल डे ऑफ टॉलरेंस की 16 नवंबर साल 1995 में घोषणा की गई थी। अच्छा आप बताएं कि आप कितने टॉलरेबल हैं। घर-परिवार में अपने बड़ों की बातों को टॉलरेट करके नजरअंदाज करते हैं, या फिर किसी पब्लिक प्लेस पर अनजान लोगों की बातों को सहन करते हैं? एक छोटा सा एग्जांपल लें तो, अकसर हम अपनों की हिदायतों को सहन नहीं कर पाते, लेकिन घर से बाहर किसी फूड रिपब्लिक में घंटों वेट करना पड़े, तो हमें कोई दिक्कत नहीं होती।

जाहिर सी बात है थोड़ी सी पेशेंस ही टॉलरेंस की पहली कड़ी है। याद रखें टॉलरेंस का मतलब अत्याचार सहना नहीं है, बल्कि रिश्तों और मानवता के लिए जहां जरूरी हो, सिर्फ वहां सब्र और सहनशीलता के साथ काम लेना है। बिना टॉलरेंस के दुनिया को रहने के लिए एक अच्छी जगह बनाना नामुमकिन होगा और भारत तो खुद ही एक टॉलरेंट कंट्री के रूप में विश्वविख्यात है। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी उम्मीद करता है. आज राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस के अवसर पर, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ 'पत्रकारिता' अपनी गरिमा और जनता का विश्वास बनाए रखे। आप सभी को हमारी ओर से इंटरनेशनल डे फॉर टॉलरेंस की भी शुभकामनाएं। माना कि पूरी दुनिया को टॉलरेट करने की जिम्मेदारी आपकी नहीं है, लेकिन अपने घर, परिवार और सोसाइटी से आप इसकी शुरुआत तो जरूर कर सकते हैं।